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Best Fantasy story in hindi - fairy tales hindi story |
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शक्तीशाली राजकुमार भाग 1 - Best short fantasy story in hindi
यह कहानी एक चंद्रपरी की हैं जो चंद्र के शीतल प्रकाश की किरणों के एकसाथ पुंज बनाने से जन्म लेती हैं जिसके पास आकार बढाने की शक्तीयों के साथ अन्य शक्तीयाँ हैं। चंद्रपर भ्रमण करने आई चंद्रपरी अपने साथ परीलोक में ले जाती हैं।कुछ समय परीलोक में घुमने के बाद रानीपरी के समक्ष सभी नई जन्मी हुई परीयों को एकसाथ लाकर परिचय पुछा जाता हैं। जैसे जैसे परीयाँ परिचय देती हैं उनके अंश से नए परीलोक का निर्माण किया जाता हैं। दुसरी ओर रानीपरी चंद्रपरी को उसका लोक ना देकर परीलोक में हीं चंद्रपूर क्षेत्र का निर्माण कर रानी बना देती हैं।
चंद्रपरी स्वयं को दिए गए कार्य को पुरा करके रानी
महल की सजावट में हाथ बँटाती हैं इस बिच चंद्रपरी अचानक से पंचमुखी हंस में बदल जाती हैं जिसका मजाक बना दिया जाता हैं। अपने हंस को त्यागने के बाद चंद्रपरी दुखी होकर एक अंश रूप से मानव जन्म लेने की ईच्छा करती हुई दिव्य दर्पण के पास से होकर गुजरने लगती हैं।
जलपरी दर्पण के बारें सारी जानकारी चंद्रपरी को बताती हैं बाद में चंद्रपरी अपना एक पुरुषतत्व रूप अंश दर्पण के माध्यम से पृथ्वीपर भेज देती हैं। वह पुंज पृथ्वी के राजपुर में आते हीं दो भागो में विभाजीत हो जाता हैं। एक भाग बंदर के रूप में जन्म लेता हैं तो दूसरा भाग राजकुमार नामक पुरुष रूप में जन्म लेता हैं। जन्म लिए 10 वर्ष पुर्ण होने पर राजकुमार को अपने स्वप्न में विशाल चंद्र दिखाई देता हैं जिसे वह केवल एक स्वप्न मानकर छोड देता हैं।
शक्तीशाली राजकुमार की कहानी भाग 1 - Best long fantasy story in hindi
कहानी की शुरुआत परीलोक चली स्थित चंद्रपरी से होती हैं। चंद्र से निकली हुई शीतल प्रकाश की किरणें पुंज का रूप लेकर एक दिव्य कन्या में बदल जाती हैं। यहीं दिव्य कन्या चंद्रपरी हैं जो अपना आकार सौर मंडल से विशाल बना सकती हैं साथ में प्रकाश की गती से सहस्त्र गुना तेज भाग सकती हैं।अपनी शक्तीयों का प्रयोग करने के लिए चंद्रपरी तीव्र गती से कई सारे सौर मंडल की परिक्रमा करते हुए चंद्र पर उतर जाती हैं। जैसे हीं चंद्रपरी को परीलोक की जानकारी अग्नीपरी द्वारा मिल जाती हैं तो वह कुछ पल में हीं तेज गती से परीलोक में प्रवेश करके आसपास की कई सारी अद्भुत चीजें देखने लगती हैं।
कुछ देर बाद रानीपरी के आते हीं सभी परीयाँ अपना स्थान ग्रहण करके परिचय देने लगती हैं और कुछ अन्य परीयाँ दुष्ट परीयों को कैद करके रानीपरी के समक्ष पेश करते हैं। रानीपरी की आज्ञा मानकर दुष्ट परीयों कारागृह में बंद कर दिया जाता हैं तबतक नई जन्म ले चुकी परीयों को एकसाथ बुलाकर परिचय पुछा जाता हैं। नई परीयों का जन्म परिचय जानने के बाद उनके हीं अंश से नए लोकों की रचना की जाती हैं ताकी परीयों को उनका लोक सौंप दिया जाता हैं।
परिचय देने की प्रक्रिया में आखिर नंबर चंद्रपरी का आता हैं। हाथ जोड़ते हुए चंद्रपरी कहती हैं, " मेरा नाम चंद्रपरी हैं और मैं चंद्रलोक से आई हूँ। चंद्रलोक के शीतल प्रकाश से जन्म हुआ मैँ चाहती हूँ आप मुझे परीलोक में रहने की आज्ञा दे "
रानीपरी कहती हैं, " चंद्रपरी तुम्हारा परिचय सुनकर अच्छा लगा, तुम्हें स्वयं का कोई लोक नहीं मिलेगा लेकीन परीलोक में चंद्रपूर नामक क्षेत्र का निर्माण करके आवश्यक कार्य सौंपे जाएँगे। तुम्हें यह स्वीकार हैं या नहीं यह तुम्हारा निर्णय हैं "
तब चंद्रपरी मन में हीं कुछ बातें सोचकर कहती हैं, " मुझे आपका निर्णय स्वीकार हैं मुझे कोई लोक नहीं चाहिए, मैं इसी परीलोक में रहूँगी "
चंद्रपरी का निर्णय जानकर खुश हुई रानीपरी परीलोक के विस्तार के लिए उपयुक्त स्थान खोजकर चंद्रपरी के अंश से चंद्रपूर नामक क्षेत्र का निर्माण कर देती हैं। इसके बाद चंद्रपूर की रानी बन चुकी चंद्रपरी अपने क्षेत्र में कई प्रकार के पशु पक्षीयों सृजन करके परीलोक में घुमती रहती हैं। परीलोक का सौंदर्य देख चंद्रपरी का मन आनंद से परिपूर्ण हो जाता हैं।
दूसरी ओर कई हजार प्रकाश वर्ष दूर चंद्रपरी अपने प्रतिरूप के द्वारा चंद्रपरीलोक की रचना शुरु कर देती है। इस कार्य से चंद्रपरी के अंदर स्थित पुरुष तत्व बाहर आकर अपने साकार रूप को धारण करने का प्रयास करता हैं लेकीन सहीं समय पर चंद्रपरी पुरुष तत्व को बाहर आने से रोक देती हैं।
इस घटना के 10 दिन बाद परीलोक को 10 लाख वर्ष पुर्ण होने वाले हैं इस अवसर पर रानीपरी की आज्ञा से परीलोक की व्यवस्था सुधारी जाती हैं और जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी परीमहल की सजावटें तेजी से शुरु की जाती हैं। दूसरी ओर चंद्रपरी परीलोक में स्थित नकारात्मक ऊर्जा को बाहर कर देती हैं मगर किसी कारणवश चंद्रपरी का झुकाव पृथ्वीपर मानवों की ओर चला जाता हैं।
पृथ्वीपर हो चुकी दिव्य घटनाओं को विस्तार से जानने के बाद मानव जन्म लेने की ईच्छा जाग जाती हैं। दिव्य चंद्रपरी चाहती हैं की वह परीलोक में रहकर हीं मानव जन्म धारण करेगी ताकी पृथ्वीपर मौजुद कष्ट ना उठाने पड जाए। ऐसा सोच रहीं थी की अचानक चंद्रपरी पंचमुखी श्वेतवर्ण हंस में बदल जाती हैं। कुछ देर तक श्वेतहंस रूप में फँसी हुई चंद्रपरी परीलोक में घुमते हुए रानीमहल में पहूँच जाती हैं।
चंद्रपरी श्वेतहंस रूप को देखकर कई परीयाँ इस रूप की प्रशंसा करती हैं तो अन्य परीयाँ हँसी मजाक शुरु कर देती हैं। अपने विरुद्ध ऐसी कड़वी बातें सुनकर दुखी हुई चंद्रपरी श्वेतहंस रूप को छोडकर सामान्य परी बन जाती हैं और रानीमहल को सजाने का कार्य करती हैं। जीन परीयों ने हंस रूप का मजाक उडाया था वहीं श्वेतहंस रूप फिर्से जाग उठता हैं।
श्वेतहंस स्वरूप चंद्रपरी के ऐसे कार्य से दुखी होकर तीव्र गती से परीलोक के बाहर दूसरी आकाशगंगा के एक चंद्र पर रहने चला जाता हैं। इसके बाद निचे गर्दन झुकाए हुई चंद्रपरी अपने क्षेत्र की ओर जाने का प्रयास करती हैं इतने में कुछ परीयाँ विशाल दर्पण के पास रहकर कुछ करते नजर आती हैं। वह देखती हैं की परीयों के शरीर से उनके अंश दर्पण के द्वारा पृथ्वी की ओर जा रहे हैं कुछ समझ न आने से उडते हुए चंद्रपरी परीयों के समूह के पास चली जाती हैं।
सभी परीयों के पास गई चंद्रपरी तेजस्वी दर्पण को एकटक देखी जाती हैं और कहती हैं, " परीयों आपके अंश पुंज के रूप में दर्पण के भीतर क्यूँ जा रहे हैं ? "
जलपरी कहती हैं, " हम दर्पण की सहायता से पृथ्वी आदी ग्रहों देखते हैं। जब हमारा मन मानव जन्म लेने की ईच्छा करता हैं तब हमारे शरीर के अंश पुंज रूप में दर्पण से होते हुए गर्भ द्वारा मानव जन्म लेते हैं। एक तरह से हम हीं मानव बनकर पृथ्वीपर रहते। "
चंद्रपरी अपना हाथ दर्पण के पास ले जाकर जलपरी से कहती हैं, " मैं भी अपने अंशरूप द्वारा पृथ्वीपर एक पुरुष रूप में जन्म लेना चाहती हूँ। मेरे शरीर में स्थित पुरुष तत्व किसी कारण से कंपित होकर बाहर आने का प्रयास कर रहा हैं। "
जलपरी कहती हैं, " पुरुष तत्व का कंपित होना थोडा अजीब सा हैं लेकीन तुम अपनी पुरुष ऊर्जा का एक अंश दर्पण में भेज दो तुम्हारा जन्म लेने का कार्य बहुत हीं सरल हो जाएगा। "
इतना कहते हीं चंद्रपरी स्वयं के पुरुष रूप का अंश एक प्रकाश पुंज रूप में दर्पण में भेज देती हैं। पुंज दर्पण से होते हुए पृथ्वी की ओर तेजी से जाता हैं तब पुंज राजपुर नामक गांव में प्रवेश करते हुए योग्य परिवार को खोजता हैं। उस पुंज को योग्य परिवार के रूप में विक्रम शिंदे दिखता हैं जिसकी पत्नी कुछ दिन बाद पुत्र को जन्म देने वाली होती हैं। पुत्र के शरीर में प्रवेश करने से पहले पुंज स्वयं को दो भागों में विभाजीत कर लेता हैं जो दर्पण देख रहीं परीयों को भी समझ नहीं आता।
एक पुंज गांव के पास स्थित विशाल पेड के पास एक बच्चों को जन्म देने वाली बंदरीया के बच्चे के रूप में जन्म लेता हैं दूसरी ओर पुंज पुत्र रूप में शरीर में समा जाता हैं। इसके कुछ दिन बाद उस पुंज का जन्म बच्चे के रूप में हो जाता हैं जिसका नाम राजकुमार रख दिया जाता हैं। अपने मानव जन्म को देख रहीं चंद्रपरी का प्रकाश पहले से दुगना बढ जाता हैं इस कारण वह चंद्रपूर की ओर चली जाती हैं। पृथ्वीपर समय तेजी से बित जाने के कारण राजकुमार भी बडा हो जाता है। 10 वर्ष का होते हीं राजकुमार को अपने स्वप्न में हर बार चंद्र दिखाई देता हैं जिसे वह केवल स्वप्न मानकर अनदेखा कर देता हैं।
दोस्तों, हमारी आज की कहानी " शक्तीशाली राजकुमार की कहानी भाग 1 - Best fantasy story in hindi " with fairy tales hindi story समाप्त हो जाती हैं। अगर आपको यह fantasy story in hindi पसंद आ जाए तो इससे संबंधित प्रश्न comment box में रख सकते हैं।
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इस कहानी का दूसरा भाग जल्द हीं आएगा।
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