लकडहारा सोने की कुल्हाडी और सफेद परी भाग 2 । Fantasy Story in hindi । hindistoryloop white fairy and the axeman
रानीपरी के श्राप के कारण श्वेतपरी पृथ्वी पर स्थित एक गंदे तालाब में प्रवेश करती हैं। तालाब में आ जाने से गंदगी हटना प्रारंभ हो जाता हैं। इस बिच एक लकडहारे की कुल्हाडी तालाब में गिर जाती हैं और उसकी भेट श्वेतपरी से हो जाती हैं।
श्वेतपरी के द्वारा दिखाई जाने वाली सोने और चांदी की कुल्हाडीयाँ लकडहारा न चुनकर लकडी की कुल्हाडी लेता हैं जो उसकी वास्तविक हैं। इससे परी खुश होकर लकडहारे को अन्य दो कुल्हाडीयाँ भेट में देती हैं। मगर स्वयं के भीतर मौजुद शुद्ध ऊर्जा का एक पुंज लकडहारे के होने वाले जुडवा बच्चों में भेज देती हैं और आखिर में श्वेत पर्वत को निवास मानकर रहने जाती हैं।
श्वेतपरी के द्वारा दिखाई जाने वाली सोने और चांदी की कुल्हाडीयाँ लकडहारा न चुनकर लकडी की कुल्हाडी लेता हैं जो उसकी वास्तविक हैं। इससे परी खुश होकर लकडहारे को अन्य दो कुल्हाडीयाँ भेट में देती हैं। मगर स्वयं के भीतर मौजुद शुद्ध ऊर्जा का एक पुंज लकडहारे के होने वाले जुडवा बच्चों में भेज देती हैं और आखिर में श्वेत पर्वत को निवास मानकर रहने जाती हैं।
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लकडहारा सोने की कुल्हाडी और सफेद परी की कहानी भाग 2। fantasy story in hindi by hindistoryloop with moral fairy tales
कहानी की शुरुआत श्वेतपरी से होती हैं जो रानीपरी के श्राप के कारण के गंदे तालाब में बस जाती हैं। पृथ्वीपर प्रकाश की गती से 1 लाख गुना तेज आते समय बहुत बडी पीडा उठानी पडती हैं किंतु उसे कुछ नई शक्तीयाँ मिल जाती हैं। श्वेतपरी को ऐसी शक्ती मिल जाती हैं की वह श्राप को कम करके 3 घंटे अपने दिव्य श्वेत रूप को प्राप्त कर सकती हैं।
श्वेतपरी तालाब के उपर एक नीले रंग की तरंग छोड कर पता करती हैं की, इस गांव के अधिकतर लोग तालाब के पास नहीं आते और जो भी अकेले आने का प्रयास करते हैं उन्हें कोई अदृश्य शक्ती अपनी ओर खिंचकर जीवन ऊर्जा छिन लेती हैं। कई लोग उस अदृश्य शक्ती को देखने कारण पागलों जैसा व्यवहार करते हैं, पर को जान नहीं पाता।
स्वयं को दिए श्राप को कम करने के लिए श्वेतपरी तालाब को साफ करने का प्रयास करती हैं पर बाहर रहस्यमयी रूप से तालाब गंदा हो जाता हैं। जितनी बार भी तालाब साफ किया जाता वापस पहले जैसा होने लगता। तालाब में होने वाली ऐसी विचित्र घटना को दूर से देखने वाले लोग भी घबरा जाते हैं।
गांव वाले लोग भय के कारण तालाब के विषय में चेतावनी का बोर्ड लगाकर सबको समझाते हैं। उनमें से एक व्यक्ती अर्जुन इन रहस्यमयी बातों को मानता हैं पर सबको ऐसे दिखाता हैं जैसे वह वैज्ञानिक मत वाला हैं और इन बातों को नकारता हैं। गांव के कुछ लोग एकजुट होकर तालाब के पास जाने का तय करते हैं और तंत्र से जुडे साधन जमा करते हैं ताकी स्वयं का बचाव कर सके।
वैज्ञानिक मत वाला व्यक्ती अर्जुन एक गरीब हैं जो लकडीयाँ बेचकर पैसे कमाता हैं। अर्जुन की पत्नी वत्सला के गर्भ में जुडवा बच्चे हैं यह बात वहाँ के डॉक्टर्स द्वारा पता चलती हैं। इन्हीं की देखभाल करने हेतु और पैसे कमाने के लिए तालाब के पास तेज चमकीली लकडीयाँ लाने का तय करता हैं।
अर्जुन को केवल इतना हीं पता होता हैं की, इन चमकिली लकडीयों की किमत लाखो हैं पर उसे कहाँ पता था की, इनके द्वारा वैज्ञानिक खोजकर्ता और जिसने उसे कार्य दिया वे शक्तीयाँ प्राप्त करना चाहते हैं बस उन्हें हाँ कह दिया और पौर्णिमा के समय जाने की तयारी शुरु कर देता हैं। रहस्यमयी जीवों पर विश्वास होने के कारण अर्जुन एक तंत्रलाठी को अपने साथ रखता हैं।
अब कहानी मुड जाती हैं श्वेतपरी की ओर क्योंकी वह तालाब को साफ नहीं कर पा रहीं थी। रानीपरी श्राप के अनुसार तालाब को साफ करने के लिए शक्तीयों का उपयोग ना करना। चिंता में पडी श्वेतपरी कुछ देर के लिए शांत होकर ध्यान लगाती हैं तब उसे अपने आसपास एक जलपिशाच की आकृती दिख जाती हैं।
श्वेतपरी देखती हैं, सोहम नाम के एक व्यक्ती को तालाब में उडते हुए गांव के कुछ लोगों ने देखा तब उन्हें सोहम के पास एक पिशाच को देखने पर वे सब डर जाते हैं। अगले दिन कुछ लोग उसी तालाब के पास जाकर बिना किसी को बताए सोहम को पिशाच समझकर मार देते हैं और कोई भी ना पकडे इस कारण शरीर को तालाब में फेंक देते हैं और सबको कहते हैं की सोहम को पिशाच ले गया।
इसी घटना के कारण सोहम जल पिशाच बन गया और उसकी अस्थियाँ तालाब में अभी तक हैं। सोहम के जल पिशाच बनने से तालाब हमेशा गंदा बना रहता हैं। सोहम अपने हत्यारों को धोखे से बुलाकर समाप्त कर देता हैं किंतु उसे मुक्ती नहीं मिल पाती। ध्यान से जागने के बाद श्वेतपरी उसी सोहम को खोजने का प्रयास करती हैं पर दिखाई नहीं देता।
दूसरी ओर गांव के कुछ लोग तालाब में हो रहीं अजीब घटना को देखने आते हैं मगर कुछ दूरी से। गांव वालों को श्वेतपरी दिखाई देती तभी सभी को अपने आसपास अच्छी और बुरी ऊर्जाए एकसाथ आभास हो जाती हैं और पसीना निकलता हैं। 2 लोग भयानक वातारण से डरकर पहले हीं भाग जाते हैं।
श्वेतपरी एक तेज बिजली का झटका पानी में छोड देती हैं। झटके के कारण पानी में स्थित जल पिशाच बाहर आ जाता हैं जिसे देख लोग डर जाते हैं। श्वेतपरी की शक्तीयाँ अधिक होने से जल पिशाच कोई हानी नहीं पहूँचा पाता मगर हमले करता रहता हैं। आखिर में परी एक मुक्के के प्रहार से जल पिशाच को शक्तीहीन करके तालाब में स्थित अस्थियों को पंच तत्व में विलीन कर देती हैं।
ऐसा करने से जल पिशाच मारा जाता हैं और सोहम अपने पूर्वरूप में वापस आ जाता हैं। तब श्वेतपरी सोहम को पुरुष रूप परीयों जैसा रूप देकर परीलोक में भेज देती हैं। इस घटना के कारण तालाब शुद्ध होने से उसमें जीवों को परी रूप देने की क्षमता आ जाती हैं। तालाब के बाहर से छुपकर देखने वाले लोगों को कुछ समय के लिए श्वेतपरी के दर्शन हो जाते हैं जिसे देखने के बाद सभी लोग जान बचाकर गांव में चले जाते हैं।
उसके अगले दिन अर्जुन चमकिली लकडीयाँ लाने हेतु कुल्हाडी लेकर जाता हैं। लकडीयाँ काटते समय तेज धार की कुल्हाडी तालाब में गिर जाती जिसे लाने वह आगे बढता हैं लेकीन तालाब से परी बाहर आ जाती हैं। भयभीत हुआ अर्जुन तंत्रलाठी का उपयोग करके बचाव का प्रयास करता हैं। अर्जुन को बाद में पता चलता हैं की, तंत्रलाठी की शक्तीयाँ इस जीव पर कार्य नहीं कर रहीं हैं।
इससे पहले भाग जाता श्वेतपरी अर्जुन को पकडकर तालाब के पास कुछ उँचाई पर खडा करती हैं।
श्वेतपरी, " बोलो अर्जुन, तुम्हें क्या चाहिए, मुझसे मत भागो, मैं तुम्हारी केवल सहायता करना चाहती हूँ।"
अर्जुन बोलता हैं, " मेरी एक कुल्हाडी लकडी काटते वक्त तालाब में गिर गई उसे हीं लाने गया था। "
श्वेतपरी कहती हैं, " क्या यह चांदी की कुल्हाडी तुम्हारी हैं। "
अर्जुन कहता हैं, " यह मेरी कुल्हाडी नहीं हैं "
श्वेतपरी तालाब में डुबकी लगाकर सोने की कुल्हाडी उपर ले आकर अर्जुन को दिखाती है।
अर्जुन कहता हैं, " मेरी कुल्हाडी न सोने की हैं न चांदी की वह तो एक साधारण लोहे लकडी की हैं "
इस बार श्वेतपरी लकडी से बनी कुल्हाडी तालाब से बाहर लाकर पुछती हैं तब लकडहारा अर्जुन उस लकडी की कुल्हाडी को पाकर खुश हो जाता हैं।
अर्जुन की ईमानदारी से खुश होकर श्वेतपरी सोने और चांदी की कुल्हाडीयाँ भेट में देकर जाने को कहती हैं। तब खुश हुआ अर्जुन अपने परिवार की ओर कुछ दिव्य चमकिली लकडीयाँ लेकर चला जाता हैं। श्वेतपरी के इस कार्य से तालाब हमेशा के लिए साफ हो जाता हैं जिसमें प्रवेश करने वाले जीव परीयों वाला स्वरूप प्राप्त करें।
श्राप कम होने से श्वेतपरी दिव्यता प्राप्त करके स्वयं की ऊर्जा का एक पुंज लकडहारे अर्जुन के जुडवा बच्चों में भेज देती हैं और श्वेतपर्वत का पता लगाकर उसी ओर जाने लगती हैं मगर वह यह भी जानती हैं की हफ्ते में दिन तालाब में बिताने हैं। आखिर में श्वेतपरी रहस्यमयी श्वेतपर्वत पर अदृश्य स्थान बनाकर रहती हैं।
उसी श्वेत पर्वत पर आए साधुजन सूक्ष्म और अदृश्य चिजों को आसानी से देखने लगते हैं तब उन्हें श्वेतपरी का अदृश्य स्थान दिखता हैं जहाँ श्वेतपरी परीलोक का ध्यान कर रहीं होती हैं। साधुजन को एक पल में श्वेतपरी और उसके श्वेताणुलोक की सभी जानकारी दिव्य शक्तीयों से मिल जाती हैं मगर साधु यह बात अपने तक सिमित रखकर ध्यान में चले जाते हैं।
तो दोस्तों आज की हमारी कहानी " लकडहारा सोने की कुल्हाडी और सफेद परी की कहानी भाग 2 " समाप्त हो जाता हैं।
आप हमें comment करके बताए की कहानी कैसी लगी और अवश्य share करें, इसका आगला भाग जलद हीं आएगा तबतक आप अन्य हिंदी कहनीयाँ पढ सकते हैं।
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श्वेतपरी तालाब के उपर एक नीले रंग की तरंग छोड कर पता करती हैं की, इस गांव के अधिकतर लोग तालाब के पास नहीं आते और जो भी अकेले आने का प्रयास करते हैं उन्हें कोई अदृश्य शक्ती अपनी ओर खिंचकर जीवन ऊर्जा छिन लेती हैं। कई लोग उस अदृश्य शक्ती को देखने कारण पागलों जैसा व्यवहार करते हैं, पर को जान नहीं पाता।
स्वयं को दिए श्राप को कम करने के लिए श्वेतपरी तालाब को साफ करने का प्रयास करती हैं पर बाहर रहस्यमयी रूप से तालाब गंदा हो जाता हैं। जितनी बार भी तालाब साफ किया जाता वापस पहले जैसा होने लगता। तालाब में होने वाली ऐसी विचित्र घटना को दूर से देखने वाले लोग भी घबरा जाते हैं।
गांव वाले लोग भय के कारण तालाब के विषय में चेतावनी का बोर्ड लगाकर सबको समझाते हैं। उनमें से एक व्यक्ती अर्जुन इन रहस्यमयी बातों को मानता हैं पर सबको ऐसे दिखाता हैं जैसे वह वैज्ञानिक मत वाला हैं और इन बातों को नकारता हैं। गांव के कुछ लोग एकजुट होकर तालाब के पास जाने का तय करते हैं और तंत्र से जुडे साधन जमा करते हैं ताकी स्वयं का बचाव कर सके।
वैज्ञानिक मत वाला व्यक्ती अर्जुन एक गरीब हैं जो लकडीयाँ बेचकर पैसे कमाता हैं। अर्जुन की पत्नी वत्सला के गर्भ में जुडवा बच्चे हैं यह बात वहाँ के डॉक्टर्स द्वारा पता चलती हैं। इन्हीं की देखभाल करने हेतु और पैसे कमाने के लिए तालाब के पास तेज चमकीली लकडीयाँ लाने का तय करता हैं।
अर्जुन को केवल इतना हीं पता होता हैं की, इन चमकिली लकडीयों की किमत लाखो हैं पर उसे कहाँ पता था की, इनके द्वारा वैज्ञानिक खोजकर्ता और जिसने उसे कार्य दिया वे शक्तीयाँ प्राप्त करना चाहते हैं बस उन्हें हाँ कह दिया और पौर्णिमा के समय जाने की तयारी शुरु कर देता हैं। रहस्यमयी जीवों पर विश्वास होने के कारण अर्जुन एक तंत्रलाठी को अपने साथ रखता हैं।
अब कहानी मुड जाती हैं श्वेतपरी की ओर क्योंकी वह तालाब को साफ नहीं कर पा रहीं थी। रानीपरी श्राप के अनुसार तालाब को साफ करने के लिए शक्तीयों का उपयोग ना करना। चिंता में पडी श्वेतपरी कुछ देर के लिए शांत होकर ध्यान लगाती हैं तब उसे अपने आसपास एक जलपिशाच की आकृती दिख जाती हैं।
श्वेतपरी देखती हैं, सोहम नाम के एक व्यक्ती को तालाब में उडते हुए गांव के कुछ लोगों ने देखा तब उन्हें सोहम के पास एक पिशाच को देखने पर वे सब डर जाते हैं। अगले दिन कुछ लोग उसी तालाब के पास जाकर बिना किसी को बताए सोहम को पिशाच समझकर मार देते हैं और कोई भी ना पकडे इस कारण शरीर को तालाब में फेंक देते हैं और सबको कहते हैं की सोहम को पिशाच ले गया।
इसी घटना के कारण सोहम जल पिशाच बन गया और उसकी अस्थियाँ तालाब में अभी तक हैं। सोहम के जल पिशाच बनने से तालाब हमेशा गंदा बना रहता हैं। सोहम अपने हत्यारों को धोखे से बुलाकर समाप्त कर देता हैं किंतु उसे मुक्ती नहीं मिल पाती। ध्यान से जागने के बाद श्वेतपरी उसी सोहम को खोजने का प्रयास करती हैं पर दिखाई नहीं देता।
दूसरी ओर गांव के कुछ लोग तालाब में हो रहीं अजीब घटना को देखने आते हैं मगर कुछ दूरी से। गांव वालों को श्वेतपरी दिखाई देती तभी सभी को अपने आसपास अच्छी और बुरी ऊर्जाए एकसाथ आभास हो जाती हैं और पसीना निकलता हैं। 2 लोग भयानक वातारण से डरकर पहले हीं भाग जाते हैं।
श्वेतपरी एक तेज बिजली का झटका पानी में छोड देती हैं। झटके के कारण पानी में स्थित जल पिशाच बाहर आ जाता हैं जिसे देख लोग डर जाते हैं। श्वेतपरी की शक्तीयाँ अधिक होने से जल पिशाच कोई हानी नहीं पहूँचा पाता मगर हमले करता रहता हैं। आखिर में परी एक मुक्के के प्रहार से जल पिशाच को शक्तीहीन करके तालाब में स्थित अस्थियों को पंच तत्व में विलीन कर देती हैं।
ऐसा करने से जल पिशाच मारा जाता हैं और सोहम अपने पूर्वरूप में वापस आ जाता हैं। तब श्वेतपरी सोहम को पुरुष रूप परीयों जैसा रूप देकर परीलोक में भेज देती हैं। इस घटना के कारण तालाब शुद्ध होने से उसमें जीवों को परी रूप देने की क्षमता आ जाती हैं। तालाब के बाहर से छुपकर देखने वाले लोगों को कुछ समय के लिए श्वेतपरी के दर्शन हो जाते हैं जिसे देखने के बाद सभी लोग जान बचाकर गांव में चले जाते हैं।
उसके अगले दिन अर्जुन चमकिली लकडीयाँ लाने हेतु कुल्हाडी लेकर जाता हैं। लकडीयाँ काटते समय तेज धार की कुल्हाडी तालाब में गिर जाती जिसे लाने वह आगे बढता हैं लेकीन तालाब से परी बाहर आ जाती हैं। भयभीत हुआ अर्जुन तंत्रलाठी का उपयोग करके बचाव का प्रयास करता हैं। अर्जुन को बाद में पता चलता हैं की, तंत्रलाठी की शक्तीयाँ इस जीव पर कार्य नहीं कर रहीं हैं।
इससे पहले भाग जाता श्वेतपरी अर्जुन को पकडकर तालाब के पास कुछ उँचाई पर खडा करती हैं।
श्वेतपरी, " बोलो अर्जुन, तुम्हें क्या चाहिए, मुझसे मत भागो, मैं तुम्हारी केवल सहायता करना चाहती हूँ।"
अर्जुन बोलता हैं, " मेरी एक कुल्हाडी लकडी काटते वक्त तालाब में गिर गई उसे हीं लाने गया था। "
श्वेतपरी कहती हैं, " क्या यह चांदी की कुल्हाडी तुम्हारी हैं। "
अर्जुन कहता हैं, " यह मेरी कुल्हाडी नहीं हैं "
श्वेतपरी तालाब में डुबकी लगाकर सोने की कुल्हाडी उपर ले आकर अर्जुन को दिखाती है।
अर्जुन कहता हैं, " मेरी कुल्हाडी न सोने की हैं न चांदी की वह तो एक साधारण लोहे लकडी की हैं "
इस बार श्वेतपरी लकडी से बनी कुल्हाडी तालाब से बाहर लाकर पुछती हैं तब लकडहारा अर्जुन उस लकडी की कुल्हाडी को पाकर खुश हो जाता हैं।
अर्जुन की ईमानदारी से खुश होकर श्वेतपरी सोने और चांदी की कुल्हाडीयाँ भेट में देकर जाने को कहती हैं। तब खुश हुआ अर्जुन अपने परिवार की ओर कुछ दिव्य चमकिली लकडीयाँ लेकर चला जाता हैं। श्वेतपरी के इस कार्य से तालाब हमेशा के लिए साफ हो जाता हैं जिसमें प्रवेश करने वाले जीव परीयों वाला स्वरूप प्राप्त करें।
श्राप कम होने से श्वेतपरी दिव्यता प्राप्त करके स्वयं की ऊर्जा का एक पुंज लकडहारे अर्जुन के जुडवा बच्चों में भेज देती हैं और श्वेतपर्वत का पता लगाकर उसी ओर जाने लगती हैं मगर वह यह भी जानती हैं की हफ्ते में दिन तालाब में बिताने हैं। आखिर में श्वेतपरी रहस्यमयी श्वेतपर्वत पर अदृश्य स्थान बनाकर रहती हैं।
उसी श्वेत पर्वत पर आए साधुजन सूक्ष्म और अदृश्य चिजों को आसानी से देखने लगते हैं तब उन्हें श्वेतपरी का अदृश्य स्थान दिखता हैं जहाँ श्वेतपरी परीलोक का ध्यान कर रहीं होती हैं। साधुजन को एक पल में श्वेतपरी और उसके श्वेताणुलोक की सभी जानकारी दिव्य शक्तीयों से मिल जाती हैं मगर साधु यह बात अपने तक सिमित रखकर ध्यान में चले जाते हैं।
Fantasy story in hindi with moral । fairy tales hindi by hindistoryloop
तब साधु ने श्वेतपरी को मन की तरंगों के द्वारा कहाँ, " ईमानदारी सर्वोत्तम निती हैं " यह कहने के बाद श्वेतपरी उस स्थान से अदृश्य हो जाती हैं। "तो दोस्तों आज की हमारी कहानी " लकडहारा सोने की कुल्हाडी और सफेद परी की कहानी भाग 2 " समाप्त हो जाता हैं।
आप हमें comment करके बताए की कहानी कैसी लगी और अवश्य share करें, इसका आगला भाग जलद हीं आएगा तबतक आप अन्य हिंदी कहनीयाँ पढ सकते हैं।
मेरे you tube channel #cosmicking की व्हिडिओज अवश्य देख सकते हैं।
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