लकडहारा सोने की कुल्हाडी और सफेद परी की कहानी भाग 1 - fantasy story in hindi by hindistoryloop - fairy tales hindi

लकडहारा सोने की कुल्हाडी और सफेद परी की कहानी भाग 1 । Fantasy Story in hindi by hindistoryloop । Introduction of fantasy moral story white fairy


भूमंडल से 20 लाख योजन उपर श्वेताणुलोक की परी श्वेतावरी क्रोध में आकर अपनी साथी परी रक्तावरी को एक लाल मणी में कैद करती हैं। श्वेतावरी के इस कृत्य से क्रोधित हुई रानीपरी सबसे पहले ऊर्जादंड छिनकर श्राप देती हैं। श्राप के कारण श्वेतावरी परी पृथ्वीपर मुक्ती हेतु आ जाती हैं।

जिस तालाब में परी रुक जाती हैं वहाँ एक लकडहारे की कुल्हाडी गिर जाती हैं बाद में आई परी उस व्यक्ती सोने चांदी की कुल्हाडी दिखाती हैं मगर वह नहीं लेता। तब परी के द्वारा दिखाई लकडी की कुल्हाडी देती हैं जिसे पाकर लकडहारा खुश हो जाता हैं। इस घटना के बाद श्वेतावरी परी श्राप मुक्त होकर श्वेत पर्वत पर चली जाती हैं। 

लकडहारा और सफेद परी भाग 1 । hindistoryloop 

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कहानी की शुरुआत भूमंडल से 20 लाख उपर पूर्व दिशा में स्थित श्वेताणुलोक से होती हैं। श्वेताणुलोक एक चक्रिय भूमंडल हैं जिसका व्यास 5 लाख योजन हैं। ऐसा होने पर भी श्वेताणुलोक एक विशाल गोल सुवर्ण आवरण से घिरा हुआ हैं जिसके आरपार जाया जा सकता हैं।


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श्वेताणुलोक की रानीपरी सभी मुख्य परीयों को उनका कार्य सौंपकर अपने सिंहासन पर जाकर बैठ जाती हैं। आदेशानुसार जैवपरी दूसरे ग्रहों पर जाकर कई जीवों के DNA और ऊर्जा पुंज को एक चक्र में मध्य में रखती हैं। ऐसा करने सभी परीयाँ उन अन्य जीवों के बारें में जान पाती हैं।

परीलोक को संभालने के लिए जब मुख्य परीयों की कमतरता आभास हो जाती हैं तब रानीपरी कई ऊर्जा पुंजों को परीतत्व से युक्त करके मुख्य परीयों का निर्माण करती हैं जिसमें से एक _रक्तावरी परी हैं। यह नई रक्तावरी परी रानीपरी की आज्ञा से अपने लिए परीलोक में स्थान का निर्माण करके उसके 1 लाख योजन उपर रक्तावर्ण लोक बनाती हैं।

परीलोक में स्थित दूसरी परी श्वेतावरी मुख्य परीयों में गिनी जाती हैं। श्वेतावरी परी 10 हजार वर्षों से मुख्य परी बनी हुई हैं और हमेशा शक्तीयाँ बढाने पर ध्यान देकर रानीपरी बनना चाहती हैं अगर यह नहीं हुआ तो स्वयं का परीलोक बनाने पर कार्य करती हैं। रानीपरी इस बात को जान जाती हैं फिर भी अच्छे कार्य करने के कारण श्वेतावरी परी को दंड नहीं देती।

श्वेतावरी परी का जन्म रानीपरी से निकलने वाले श्वेत प्रकाश पुंज से हुआ था जिस कारण कारण श्वेत वर्ण की हैं। यह श्वेतपरी अपने सफेद रंग को लेकर बडी बडी बातें करती हैं लेकीन कोई भी उसकी बातों पर ध्यान नहीं देता और अपना नियमित कार्य करती हैं।

एक दिन श्वेतपरी को पता चलता हैं की नई निर्माण हुई रक्तपरी मुझसे अधिक शक्तीशाली हैं और कुछ पल में हीं अपने लोक का निर्माण कर लिया। इस बात से श्वेतपरी को गुस्सा आ जाता हैं और कैसे भी करके शक्तीशाली बनने के लिए रक्तपरी का मजाक उडाती हैं पहले पहले तो रक्तपरी उसकी बातों पर ध्यान नहीं देती और जीवों के प्रकाश पुंज लाने निकल जाती हैं।

प्रकाश पुंज लाने के बाद रक्तपरी जैसे हीं चक्र के उपर रखने जाती हैं तो श्वेतपरी उसे एक पोर्टल से डार्क होल में भेज देती हैं। रक्तपरी अभी तक न देखे जाने से रानीपरी चिंता में पड जाती हैं मगर उसका पता भी नहीं चलता। तब रानीपरी दिव्य शक्तीपुंज से पता लगाती हैं की रक्तपरी एक डार्क होल में फँस गई हैं और निकल नहीं पा रहीं हैं। प्रकाश की गती से उडने पर भी डार्क होल की 1% दूरी पार न कर सकी।

रानीपरी तुरंत हीं एक दिव्यद्वार को प्रकट करके रक्तपरी के पास चली जाती हैं। अब अधिक समय बिताए बिना दोनों परीयाँ अपने श्वेताणुलोक में रानीपरी के महल में आ जाती हैं। भयभीत हुई रक्तपरी अपने साथ हुई घटना सभी बताती हैं जिस कारण सभी परीयाँ श्वेतपरी से दुरिया बनाने लगती हैं। रानीपरी बिना कुछ कहें श्वेतपरी की कुछ शक्तीयाँ छिनकर उसे उसके स्थानपर भेज देती हैं।

श्वेतपरी इस बात को अपमान समझकर रक्तपरी से बदला लेने का तय करती हैं। रक्तपरी जो भी कार्य श्वेतपरी उसपर नजर बनाए रखकर सहीं समय की प्रतिक्षा करती हैं जब उसे कैद किया जा सके और कोई भी उसे छुडा ना पाए। आखिर ऐसा समय आ हीं जाता हैं। रानीपरी अकेले हीं दूसरे ग्रहों पर जाकर बुरी शक्तीयों वाली परीयों को कैद करके परीलोक में लाती हैं ताकी उन्हें सुधारा जा सके।

रानीपरी की बात मानकर सभी कैद की गई परीयों को चक्र के पास रखा जाता हैं। बुरी परीयाँ चाहकर भी अपने आप को छुडा नहीं पाती तब कालीपरीयों को श्वेतपरी में अंधकार दिखाई देता हैं। 5 कालीपरीयाँ अपनी थोडी अंधकार की शक्तीयाँ श्वेतपरी में प्रवेश करती हैं पर श्वेतपरी जान नहीं पाती। रक्तपरी लाल मणीयों को सबके समक्ष रखकर प्रक्रिया शुरु करने जाती हैं।

रक्तपरी 3 कालीपरीयों को सफलता पूर्वक लाल मणी में कैद करके हमेशा के लिए चक्र के उपर रख देती हैं।
श्वेतपरी कहती हैं, " क्या हुआ रक्तपरी, बडे लोक का निर्माण करने की क्षमता रखने वाली आज कालीपरी यों को एकसाथ नहीं कैद कर पा रहीं "
रक्तपरी शांत होकर कहती हैं, " ऐसा नहीं हैं श्वेतपरी, यह कालीपरीयाँ साधारण नहीं, इन्हें कैद करने के लिए स्वयं रानीपरी को जाना पडा "
श्वेतपरी तिरछी नजर से, " मुझे तो पता हीं था तुम इतनी कमजोर हो जो इन्हें लालमणी में भेज रहीं हो "

इतना सुनने के बाद रक्तपरी शांत हो जाती हैं पर तभी श्वेतपरी अपनी सुंदरता के प्रभाव में आकर कहती हैं, " तुम्हारा लाल रंग जो इन्हीं कालीपरीयों के समान दिखाई देती हैं, वैसे तुम हो हीं कालीपरी "
रक्तपरी क्रोधित होकर, " मैं काली हूँ या गोरी तुम्हें इस्से क्या लेना देना, तुम मेरा मजाक उडाना बंद कर दो, नहीं तो शिकायत करूँगी रानीपरी से "
ऐसा कहने के बाद रक्तपरी अपनी शक्तीयों से श्वेतपरी के शरीर पर काले दाग को उत्पन्न करती हैं।

श्वेतपरी के शरीर पर काले दाग आने से कई सारी परीयाँ मजाक उडाती हैं और रक्तपरी अपने मन हीं हँसती रहती हैं। अबतक जो श्वेतपरी दूसरों का मजाक उडाया करती थी उसका हीं मजाक बन कर गया। श्वेतपरी को अपने शरीर पर काले दाग सहन नहीं हुए और पूरी तरह से स्वयं को आग की लपटों में बदलती हैं लेकीन शक्तीयाँ कम होने से रक्तपरी को थोडा सा हीं नुकसान पहूँचा पाती हैं।

श्वेतपरी की नजर लालमणी की ओर जाती हैं जिसमें रानीपरी तक को कैद किया जा सकता हैं। श्वेतपरी अपना बदला लेने हेतु पूरी शक्ती का उपयोग करके रक्तपरी को हमेशा के लिए लालमणी के आयाम में कैद कर देती हैं। ऐसा करने से श्वेतपरी का गुस्सा शांत हो जाता हैं और हँसने वाली परीयों की ओर आगे बढती रहती हैं। क्रोध के कारण 2 गुना शक्तीयाँ बढने से कई परीयों को हराकर लालमणी में कैद कर देती हैं मगर कुछ परीयों का सामना नहीं कर पाती।

चंद्रपरी यह सारी घटना पहले हीं रानीपरी को बता देती हैं और बाद में दोनों आकर एक पल में हीं श्वेतपरी को रोककर बाँध देती हैं। श्वेतपरी रानीपरी के बंधन से नहीं छुट पाती मगर शरीर पर मौजुद काले दाग हट जाते हैं तब श्वेतपरी को पता चलता हैं की, सुंदरता के अहंकार ने कई परीयों को हमेशा के दूर कर दिया। अब उसे पास दंड भुगतने से कोई नहीं रोक सकता।

रानीपरी क्रोधित होकर, " बहुत हुआ तुम्हारा यह अहंकार, अब तुम्हे सजा मिलकर हीं रहेगी, शायद तुम्हें लालमणी में हीं कैद करना होगा ? "
श्वेतपरी क्षमा याचना करते हुए, " मुझे लालमणी में कैद मत करो, चाहे तो मेरी सारी शक्तीयाँ छिन लो मगर लालमणी में मत भेजो "
चंद्रपरी कहती हैं, " इस परी को सुंदरता पर घमंड हैं, इसकी सुंदरता हीं छिन ली जाए, कैसा रहेगा ?"
चंद्रपरी की ऐसी बातें सुनकर श्वेतपरी दुखी होकर रोने लग जाती हैं।

रानीपरी तेजी से श्वेतपरी का ऊर्जादंड लेकर कुछ शक्तीयाँ छिनकर एक श्वेतमणी में भेज देती हैं बाद में उसका शरीर काले वर्ण का करके श्राप देती हैं, " हे श्वेतपरी, मैं तुम्हें श्राप देती हूँ, की तुम एक करोड वर्ष तक पृथ्वी एक गंदे तालाब में रहोगी अगर तुमने किसी अच्छे जीव को नुकसान पहूँचाया तो तुम हमेशा के वैसे हीं रह जाओगी "
ऐसा श्राप मिलने पर श्वेतपरी कई प्रकार से क्षमा माँगती हैं और मुक्ती का उपाय बताने को कहती हैं।

रानीपरी कहती हैं, " मैं श्राप को वापस नहीं ले सकती लेकीन कम कर सकती हूँ, तुम जिस तालाब में रहोगी उसे बिना शक्तीयों के 10 वर्ष तक साफ रखना होगा और बाहरी शक्तीयों का उपयोग कर ऐसा बनाना होगा जो भी जीव उसमें मुक्ती के लिए प्रवेश करें दिव्य परी रूप को प्राप्त हो जाए और साथ हीं कई लोगों की मदद करनी होगी "
श्वेतपरी पुछती हैं, " कैसी मदद, उससे मुझे क्या मुक्ती मिल सकती हैं ? "
रानीपरी, " तुम्हें मुक्ती अवश्य मिल जाएगी लेकीन तुम कभी परीलोक में प्रवेश नहीं कर पाओगी, किंतु हाँ तुम्हें अपना निवास पृथ्वी के श्वेतपर्वत पर बसाना हैं "

ऐसा कहती हीं रानीपरी का श्राप दिखाई देना शुरु हो जाता हैं। श्वेतपरी अब कालीपरी बन जाती हैं कई शक्तीयाँ खो देती हैं और एक काले बादल में बदलते हुए शरीर गायब हो जाता हैं। आखिर में श्वेतपरी दुखी मन और पछतावे से पृथ्वी की ओर खिंची चली जाती हैं। श्वेतपरी की गती प्रकाश जितनी हैं फिर भी श्राप की ऊर्जा से श्वेतपरी की गती प्रकाश से 1लाख गुना तेज हो जाती हैं और आखिर में teleport होकर पृथ्वी पर स्थित एक गंदे तालाब में बस जाती हैं।

तो दोस्तों आज की हमारी कहानी " लकडहारा सोने की कुल्हाडी और सफेद परी की कहानी भाग 1 " समाप्त हो जाता हैं।
आप हमें comment करके बताए की कहानी कैसी लगी और अवश्य share करें, इसका आगला भाग जलद हीं आएगा तबतक आप अन्य हिंदी कहनीयाँ पढ सकते हैं।

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लकडहारा सोने की कुल्हाडी और सफेद परी भाग 1 - Moral in hindi by hindistoryloop web

सीख - " घमंड का अंत सदैव बुरा हीं होता हैं, जिससे बचा नहीं जा सकता "

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