लालची कौवा हिंदी कहानी - Lalchi Kauwa Greedy Crow Story in hindi moral story
यह कहानी एक लालची कौवे की हैं की जो लालच में पड जाता हैं । वह कौवा मछली के लालच में पडकर अपने दोस्त कबूतर की बातों को अनदेखा करके रसोई घर में चला जाकर मछली खाणे लगता हैं लेकीन बाद में एक रसोईया कौवे को पकड लेता और बुरी हालत की जाती हैं। उसके बाद लालची कौवा ( Greedy Crow in hindi ) को अपने लालच का दंड भुगतना पड जाता हैं। इसके बाद लालची कौवा दूसरा घर खोजने जंगल की ओर चला जाता हैं।
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लालची कौवा की कहानी । Greedy Crow in Hindi |
Greedy Crow in hindi moral story । lalchi kauwa long story । Greedy Crow in hindi । लालची कौवा हिंदी कहानी by hindistoryloop
कहानी की शुरुआत मोरेश्वर गांव से होती हैं जहाँ अनेको पशु पक्षी भ्रमण करने आ जाते हैं और कई पक्षी खाने की खोज में इधर उधर भटकते हैं। उस गांव की खास बात यह हैं की गांव में पक्षीराज नाम का एक छोटा मंदिर हैं जिसमें अनेको रहस्यमयी पशु पक्षीयों के चित्र मुर्तीयाँ हैं। वहाँ के लोगों का मानना हैं की इस मंदिर से एक रहस्यमयी तरंग निकलती हैं जिस्के कारण पक्षी भारी संख्या में गांव में आकर भ्रमण करते हैं।
इन्हीं गांव वालों को सुर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, पौर्णिमा और अमावस्या के दिन अनदेखे पक्षी की झलक 10 मिनट तक दिखाई देती हैं कभी कभार ऐसा नहीं होता। गर्मीयों के दिन आने पर जब पक्षीयों को खाना पानी नहीं मिलता तो गांव के लोग अपने घर के उपर छोटा सा पक्षी घर बनाकर उसमें खाना पानी रख देते हैं।
इस बार की गर्मी में जब पक्षी खाने के लिए भटकते रहते हैं तो लोग पक्षीघर में खाना रखकर चले जाते हैं। कई लोग पक्षीघरों को सडक किनारे पर पेड के पास रख देते हैं। इसी गर्मी में अनेको पक्षी गांव में फैल जाते हैं जिसकी व्हिडिओज कई सोशल मीडिया पर दिखाई जाती हैं।
एक लखपती व्यक्ती महेंद्र के घर में श्याम एक रसोई में काम करता हैं। वह श्याम अपने घर में खुद हीं खाना बनाया करता हैं और थोडा खाना पशु पक्षी को बाहर रख देता हैं। तब कबूतर खाना खोजते हुए श्याम के रसोईए में आकर रहने लगता हैं। रसोईया श्याम जो भी दाना पानी देता उसे ग्रहण करके शांत एक कोने में घर समझकर रहने लगता हैं।
इस प्रकार कबूतर हर रोज श्याम के घर पर आकर रहना शुरु करता हैं यह बात श्याम को अच्छी लगती हैं। श्याम देखता हैं की कबूतर प्रतिदिन उडकर खाने की खोज में जाता हैं और वापस इसी कोने में बने घर में वापस लौटकर शांत बैठ जाता हैं। इसके बाद श्याम बडी मेहनत से एक पक्षीघर बनाकर कोने रखकर चला जाता हैं जहाँ कबूतर आकर बैठ जाता हैं।
एक दिन श्याम रसोई में आकर मछलीयाँ पकाने लगता हैं तो उसकी सुंगध से उपर से जा रहा कौवा आकर्षित हो जाता हैं। कौवे के मुह में पानी आया और उसने मछली खाने का सोचा। पर श्याम के होने से कौवा रसोई में प्रवेश नहीं कर पाता और बाहर हीं खिडकी के पास बैठ गया। शाम के समय कौवे ने एक कबूतर को रसोई में जाते देखा यो उसने भी सोचा की मैं इसी कबूतर के सहारे से रसोई में जाउँगा और मछली खा जाउँगा। वह कौवा घर के पास मौजुद पेड पर जाकर कबूतर पर नजर रखना शुरु कर देता हैं।
अगले दिन कौवे ने उसी सफेद कबूतर को रसोई के बाहर कई जाते देख पीछा किया और एक स्थान पर जाकर रुकने के लिए तब दोनों एक विशाल पेड के टहनी पर बैठकर बातें शुरु कर देते हैं, पहले तो कबूतर कुछ नहीं बोलता लेकीन बाद में कौवे की स्थिती देख बोलने लगता हैं।
कबूतर कहता हैं, "अरे कौवे भाई तुम मेरे पीछा क्यूँ कर रहे हो ? तुम्हें आखिर क्या चाहिए ? "
कौवा मौके का फायदा उठाकर तारिफ़ करने लगता हैं
कौवा कहता हैं, "मेरे प्रिय दोस्त मुझे तुम्हारा स्वभाव रहन सहन बहुत अच्छा लगा, इस कारण मैं तुम्हारी सेवा करना चाहता हूँ, बस मुझे तुम्हारी तरह एक अच्छा जीवन चाहिए "
कबूतर कौवे के द्वारा की जाने वाली तारिफ़ और आदर से खुश होकर चाल में फँस गया।
कबूतर कहने लगा, " कौए भाई, मुझे तुम्हारी बातें पसंद आई, परंतु हम दोनों का भोजन अलग हैं, तुम्हें शायद पसंद ना आए। साथ हीं मेरी सेवा करने के तुम्हें कठिनाई उठानी पड सकती हैं। क्या यह बात तुम्हें स्वीकार हैं, तो बोलो"
कौवा इस बात पर हठ करके बोला, " मुझे यह बात स्वीकार हैं, मैं तुम्हारे साथ हीं भोजन करूँगा और जैसा तुम कहोगे मैं वैसा करूँगा और तुम घरपर लौट जाओगे तभी मैं लौट जाउँगा।"
कबूतर ने कौवे को चेतावनी देते हुए कहाँ, " ठिक हैं, लेकीन सतर्क रहो कई जान पर ना बन आए "
इसके कुछ पल बाद कौवा और कबूतर श्याम के घर के पास आ जाते हैं जहाँ अनाज के दाने बीज रखे हुए हैं पास हीं में कुछ गोबर पडा होता हैं जिसमें किडे हैं। कबूतर अनाज के दाने और कुछ बीज को खाने लगता हैं जब्की कौवा पास में स्थित गोबर में से किडे खाने लगता हैं। कौवा कबूतर को अधिक खाना खाते देख जलन महसुस करता हैं।
कौवा कबूतर के पास आकर कहता हैं, " दोस्त, तुम्हें अनाज के दाने चुगने में अधिक समय लगता हैं, कम खाया करो।"
कबूतर कहता हैं, " कौवे भाई, तुम केवल अपने खाने लर ध्यान दो, हमें जल्दी घर लौटना हैं।"
शाम ढलने के बाद कबूतर और कौवा दोनों रसोई में आकर पक्षीघर में चले जाते हैं।
श्याम देखता हैं की, मेरे पालतू कबूतर के साथ एक अन्य पक्षी आया हैं दोनों पक्षीघर में चले गए।
इसके बाद रसोईया श्याम दूसरे पक्षी के लिए रहने हेतु नया पक्षीघर बनाकर रख देता हैं। थोडी देर बाद श्याम के जाने पर कौवा दूसरे पक्षीघर में आराम से रहता हैं। इस प्रकार दोनों पक्षी आराम से एक साथ रहने लगे लेकीन मछली खाने की इच्छा अभी भी अधुरी रह जाती हैं।
लखपती महेंद्र का घर और श्याम मा घर एक दूसरे के पास हीं हैं। अगले दिन महेंद्र अपने घर में दावत के लिए कई सारी मछलीयाँ लेकर आता हैं और रसोईयाँ श्याम को बुलाता हैं। श्याम उन मछलीयों को अच्छी तरह से साफ करके रस्सी से बाँधकर लटका दिया बाद में सभी मछलीयों को बडे फ्रिज में रख लिया। सभी मछलीयों को देख कौवे के मुख में पानी आया और इसी घर में रुकना का निर्णय लिया फिर भी लौटकर कबूतर के पास आया।
उसी दिन कौवे ने बेचैनी से पूरी रात काटी और सुबह होते हीं बहाना बनाकर रुकने की योजना बनाई। सुबह होने पर बाहर जाने के लिए निकले कबूतर ने कौवे से कहाँ, " कौवे भाई, बाहर घुमने जाते हैं, अच्छा खाना मिल सकता हैं"
कौवे ने दर्द भरी आवाज में कहाँ, " आज तुम अकेले हीं बाहर जाना, मेरे पेट में दर्द हैं"
कबूतर समझ गया की, कौवा कुछ तो छुपा रहा हैं लेकीन बता नहीं रहा।
कबूतर ने कहाँ, " भाई कौवे, मैंने आज से पहले कभी नहीं सुना की कौवे पेट में दर्द होता हैं। तुम कहीं ना कहीं भुख से व्याकुल हो रहे हो, कहीं तुम मछली खाने के बारें में तो नहीं सोच रहे हो ? तुम्हें मानवों का भोजन नहीं खाना चाहिए, मेरे साथ दाना चुगने चलो, कहीं तुम मुसिबत में ना पड जाओ।"
कौवा अपनी बात पर अडिग रहकर कहता हैं, " दोस्त, मेरे साथ ऐसा नहीं होगा, मैं तुम्हारे साथ नहीं आ सकता, मुझे क्षमा करना।"
कबूतर ने कहाँ, " ठिक हैं, तुम्हें मेरी नहीं माननी हैं तो मत मानो, सचेत करना मेरा काम हैं, आगे चलकर तुम्हें हीं नुकसान उठाना पड सकता हैं।" तब कबूतर दाना चुगने उड गया।
इसके बाद कौवा लखपती महेंद्र के रसोई के पास चला गया जहाँ पर श्याम में मछलीयों के कई प्रकार के व्यंजन बनाए होते हैं। मछली का भोजन बनाने के बाद बर्तन का ढक्कन खोलकर उसपर बडे चम्मच रखे और रसोई के बाहर जाकर कपडे से पसीना पोंछने लग जाता हैं। रसोईए को बाहर जाते देख कौवा सोचने लगा, "यहीं सहीं समय हैं पेट भरकर मछली खाने का, अब मुझ से नहीं रहा जा रहा। छोटे तुकडे खाऊ या बडे तुकडे। ऐसा करता हूँ की कुछ तुकडे घर ले जाकर आराम से खाऊँगा।"
बिना देरी किए कौवा रसोई में घुस गया और मछली रखे हुए पतीले पर जा बैठा। बैठने के बाद जैसे हीं चोंच आगे बढाई पतीला हिला, उस आवाज रसोईया धीरे से अंदर आया। श्याम ने एक कौवे को मछली खाते देखा और बोला, " अच्छा, यह कौवा मेरे बॉस की दावत में पकाई मछलीयों को खाने आया हैं, मैं उसे सबक सीखाऊँगा जाने नहीं दूँगा।"
इतना कहने के बाद रसोईए ने रसोई के सारे दरवाजे बंद कर दिए ताकी कौवा भाग न जाए। श्याम ने अधिक मेहनत से कौवे को पकडकर उसके पंखों पर मसाला, नमक लगा दिया और पानी में भीगो ने के बाद रसोई से बाहर फ़ेक दिया। इसके बाद कौवे ने अपने उपर के मसालों को हटाया और तप्ती धुप में खुद को सुखाने लगा। पंख आदी सुखने के बाद कौवा सीधे अपने पक्षीघर में आया और सारी बातें कबूतर को बताई।
इसके बाद कबूतर ने कहाँ, " मैंने तुम्हे पहले हीं बताया था, इस कार्य का नुकसान उठाना पड सकता हैं, तुमने मेरी बात नहीं मानी और अपने लालच की वजह से फल भुगत रहे हो।"
कबूतर की बात ठिक से जानने के बाद कौवा कुछ समय तक कबूतर के साथ पक्षीघर में रहा और बाद में नया घर खोजने जंगल की ओर चला गया।
इन्हीं गांव वालों को सुर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, पौर्णिमा और अमावस्या के दिन अनदेखे पक्षी की झलक 10 मिनट तक दिखाई देती हैं कभी कभार ऐसा नहीं होता। गर्मीयों के दिन आने पर जब पक्षीयों को खाना पानी नहीं मिलता तो गांव के लोग अपने घर के उपर छोटा सा पक्षी घर बनाकर उसमें खाना पानी रख देते हैं।
इस बार की गर्मी में जब पक्षी खाने के लिए भटकते रहते हैं तो लोग पक्षीघर में खाना रखकर चले जाते हैं। कई लोग पक्षीघरों को सडक किनारे पर पेड के पास रख देते हैं। इसी गर्मी में अनेको पक्षी गांव में फैल जाते हैं जिसकी व्हिडिओज कई सोशल मीडिया पर दिखाई जाती हैं।
एक लखपती व्यक्ती महेंद्र के घर में श्याम एक रसोई में काम करता हैं। वह श्याम अपने घर में खुद हीं खाना बनाया करता हैं और थोडा खाना पशु पक्षी को बाहर रख देता हैं। तब कबूतर खाना खोजते हुए श्याम के रसोईए में आकर रहने लगता हैं। रसोईया श्याम जो भी दाना पानी देता उसे ग्रहण करके शांत एक कोने में घर समझकर रहने लगता हैं।
इस प्रकार कबूतर हर रोज श्याम के घर पर आकर रहना शुरु करता हैं यह बात श्याम को अच्छी लगती हैं। श्याम देखता हैं की कबूतर प्रतिदिन उडकर खाने की खोज में जाता हैं और वापस इसी कोने में बने घर में वापस लौटकर शांत बैठ जाता हैं। इसके बाद श्याम बडी मेहनत से एक पक्षीघर बनाकर कोने रखकर चला जाता हैं जहाँ कबूतर आकर बैठ जाता हैं।
एक दिन श्याम रसोई में आकर मछलीयाँ पकाने लगता हैं तो उसकी सुंगध से उपर से जा रहा कौवा आकर्षित हो जाता हैं। कौवे के मुह में पानी आया और उसने मछली खाने का सोचा। पर श्याम के होने से कौवा रसोई में प्रवेश नहीं कर पाता और बाहर हीं खिडकी के पास बैठ गया। शाम के समय कौवे ने एक कबूतर को रसोई में जाते देखा यो उसने भी सोचा की मैं इसी कबूतर के सहारे से रसोई में जाउँगा और मछली खा जाउँगा। वह कौवा घर के पास मौजुद पेड पर जाकर कबूतर पर नजर रखना शुरु कर देता हैं।
अगले दिन कौवे ने उसी सफेद कबूतर को रसोई के बाहर कई जाते देख पीछा किया और एक स्थान पर जाकर रुकने के लिए तब दोनों एक विशाल पेड के टहनी पर बैठकर बातें शुरु कर देते हैं, पहले तो कबूतर कुछ नहीं बोलता लेकीन बाद में कौवे की स्थिती देख बोलने लगता हैं।
कबूतर कहता हैं, "अरे कौवे भाई तुम मेरे पीछा क्यूँ कर रहे हो ? तुम्हें आखिर क्या चाहिए ? "
कौवा मौके का फायदा उठाकर तारिफ़ करने लगता हैं
कौवा कहता हैं, "मेरे प्रिय दोस्त मुझे तुम्हारा स्वभाव रहन सहन बहुत अच्छा लगा, इस कारण मैं तुम्हारी सेवा करना चाहता हूँ, बस मुझे तुम्हारी तरह एक अच्छा जीवन चाहिए "
कबूतर कौवे के द्वारा की जाने वाली तारिफ़ और आदर से खुश होकर चाल में फँस गया।
कबूतर कहने लगा, " कौए भाई, मुझे तुम्हारी बातें पसंद आई, परंतु हम दोनों का भोजन अलग हैं, तुम्हें शायद पसंद ना आए। साथ हीं मेरी सेवा करने के तुम्हें कठिनाई उठानी पड सकती हैं। क्या यह बात तुम्हें स्वीकार हैं, तो बोलो"
कौवा इस बात पर हठ करके बोला, " मुझे यह बात स्वीकार हैं, मैं तुम्हारे साथ हीं भोजन करूँगा और जैसा तुम कहोगे मैं वैसा करूँगा और तुम घरपर लौट जाओगे तभी मैं लौट जाउँगा।"
कबूतर ने कौवे को चेतावनी देते हुए कहाँ, " ठिक हैं, लेकीन सतर्क रहो कई जान पर ना बन आए "
इसके कुछ पल बाद कौवा और कबूतर श्याम के घर के पास आ जाते हैं जहाँ अनाज के दाने बीज रखे हुए हैं पास हीं में कुछ गोबर पडा होता हैं जिसमें किडे हैं। कबूतर अनाज के दाने और कुछ बीज को खाने लगता हैं जब्की कौवा पास में स्थित गोबर में से किडे खाने लगता हैं। कौवा कबूतर को अधिक खाना खाते देख जलन महसुस करता हैं।
कौवा कबूतर के पास आकर कहता हैं, " दोस्त, तुम्हें अनाज के दाने चुगने में अधिक समय लगता हैं, कम खाया करो।"
कबूतर कहता हैं, " कौवे भाई, तुम केवल अपने खाने लर ध्यान दो, हमें जल्दी घर लौटना हैं।"
शाम ढलने के बाद कबूतर और कौवा दोनों रसोई में आकर पक्षीघर में चले जाते हैं।
श्याम देखता हैं की, मेरे पालतू कबूतर के साथ एक अन्य पक्षी आया हैं दोनों पक्षीघर में चले गए।
इसके बाद रसोईया श्याम दूसरे पक्षी के लिए रहने हेतु नया पक्षीघर बनाकर रख देता हैं। थोडी देर बाद श्याम के जाने पर कौवा दूसरे पक्षीघर में आराम से रहता हैं। इस प्रकार दोनों पक्षी आराम से एक साथ रहने लगे लेकीन मछली खाने की इच्छा अभी भी अधुरी रह जाती हैं।
लखपती महेंद्र का घर और श्याम मा घर एक दूसरे के पास हीं हैं। अगले दिन महेंद्र अपने घर में दावत के लिए कई सारी मछलीयाँ लेकर आता हैं और रसोईयाँ श्याम को बुलाता हैं। श्याम उन मछलीयों को अच्छी तरह से साफ करके रस्सी से बाँधकर लटका दिया बाद में सभी मछलीयों को बडे फ्रिज में रख लिया। सभी मछलीयों को देख कौवे के मुख में पानी आया और इसी घर में रुकना का निर्णय लिया फिर भी लौटकर कबूतर के पास आया।
उसी दिन कौवे ने बेचैनी से पूरी रात काटी और सुबह होते हीं बहाना बनाकर रुकने की योजना बनाई। सुबह होने पर बाहर जाने के लिए निकले कबूतर ने कौवे से कहाँ, " कौवे भाई, बाहर घुमने जाते हैं, अच्छा खाना मिल सकता हैं"
कौवे ने दर्द भरी आवाज में कहाँ, " आज तुम अकेले हीं बाहर जाना, मेरे पेट में दर्द हैं"
कबूतर समझ गया की, कौवा कुछ तो छुपा रहा हैं लेकीन बता नहीं रहा।
कबूतर ने कहाँ, " भाई कौवे, मैंने आज से पहले कभी नहीं सुना की कौवे पेट में दर्द होता हैं। तुम कहीं ना कहीं भुख से व्याकुल हो रहे हो, कहीं तुम मछली खाने के बारें में तो नहीं सोच रहे हो ? तुम्हें मानवों का भोजन नहीं खाना चाहिए, मेरे साथ दाना चुगने चलो, कहीं तुम मुसिबत में ना पड जाओ।"
कौवा अपनी बात पर अडिग रहकर कहता हैं, " दोस्त, मेरे साथ ऐसा नहीं होगा, मैं तुम्हारे साथ नहीं आ सकता, मुझे क्षमा करना।"
कबूतर ने कहाँ, " ठिक हैं, तुम्हें मेरी नहीं माननी हैं तो मत मानो, सचेत करना मेरा काम हैं, आगे चलकर तुम्हें हीं नुकसान उठाना पड सकता हैं।" तब कबूतर दाना चुगने उड गया।
इसके बाद कौवा लखपती महेंद्र के रसोई के पास चला गया जहाँ पर श्याम में मछलीयों के कई प्रकार के व्यंजन बनाए होते हैं। मछली का भोजन बनाने के बाद बर्तन का ढक्कन खोलकर उसपर बडे चम्मच रखे और रसोई के बाहर जाकर कपडे से पसीना पोंछने लग जाता हैं। रसोईए को बाहर जाते देख कौवा सोचने लगा, "यहीं सहीं समय हैं पेट भरकर मछली खाने का, अब मुझ से नहीं रहा जा रहा। छोटे तुकडे खाऊ या बडे तुकडे। ऐसा करता हूँ की कुछ तुकडे घर ले जाकर आराम से खाऊँगा।"
बिना देरी किए कौवा रसोई में घुस गया और मछली रखे हुए पतीले पर जा बैठा। बैठने के बाद जैसे हीं चोंच आगे बढाई पतीला हिला, उस आवाज रसोईया धीरे से अंदर आया। श्याम ने एक कौवे को मछली खाते देखा और बोला, " अच्छा, यह कौवा मेरे बॉस की दावत में पकाई मछलीयों को खाने आया हैं, मैं उसे सबक सीखाऊँगा जाने नहीं दूँगा।"
इतना कहने के बाद रसोईए ने रसोई के सारे दरवाजे बंद कर दिए ताकी कौवा भाग न जाए। श्याम ने अधिक मेहनत से कौवे को पकडकर उसके पंखों पर मसाला, नमक लगा दिया और पानी में भीगो ने के बाद रसोई से बाहर फ़ेक दिया। इसके बाद कौवे ने अपने उपर के मसालों को हटाया और तप्ती धुप में खुद को सुखाने लगा। पंख आदी सुखने के बाद कौवा सीधे अपने पक्षीघर में आया और सारी बातें कबूतर को बताई।
इसके बाद कबूतर ने कहाँ, " मैंने तुम्हे पहले हीं बताया था, इस कार्य का नुकसान उठाना पड सकता हैं, तुमने मेरी बात नहीं मानी और अपने लालच की वजह से फल भुगत रहे हो।"
कबूतर की बात ठिक से जानने के बाद कौवा कुछ समय तक कबूतर के साथ पक्षीघर में रहा और बाद में नया घर खोजने जंगल की ओर चला गया।
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