गहरा ज्ञान भाग 1 चित्रसेन । Fiction story in hindi । hindistorloop story with moral

गहरा ज्ञान भाग 1 चित्रसेन । Fiction story in hindi । hindistorloop story with moral । Introduction 

यह कहानी एक ऐसे चित्रकार की हैं जिसका ना चित्रसेन हैं। चित्रसेन अपने गुरू के कारण वास्तविक चित्र बनाने में महारत प्राप्त करता हैं। इसी के चलते चित्रसेन कई शक्तीशाली राजा महाराजों के चित्र बनाकर धन दौलत आदी प्राप्त करता हैं लेकीन वह सब अपने गुरू के चरणों में रख देता हैं। 

चित्रसेन की प्रसिद्धी राजा मेघराज को पता चलती और वह चित्रसेन को चित्र बनाने के लिए बुलाता हैं। राजा एक आँख से अँधे होने के बाद भी उनके पास 1000 हाथीयों की शक्ती हैं और जरा सी गलती पर कठोर दंड भी देते हैं। चित्रसेन राजा का चित्र बनाने में देरी करता हैं ताकी उसे कोई सजा ना मिल जाए और अतिरिक्त समय मिल जाए। 

दुविधा भरी स्थिती में चित्रसेन गुरू के पास जाकर सबकुछ बताता हैं जिसपर गुरू राजा की योद्धा वाली चित्रकारी करने को कहते हैं। गुरू की बात मानकर चित्रसेन राजा की योद्धा वाली तस्वीर बनाता हैं जो सभी पसंद आती हैं। राजा खुश होकर चित्रसेन को एक दिव्य मोती भेट में देता हैं। 


गहरा ज्ञान भाग 1 चित्रसेन । fiction story in hindi । hindistorloop 


गहरा ज्ञान भाग 1 - चित्रसेन । Fiction story in hindi । hindistoryloop with moral in hindi


कहानी की शुरुआत द्वैतनगर राज्य से होती हैं जहाँ का राजा मेघराज बडा हीं क्रोधी था छोटी छोटी बातों पर क्रोध करके लोगों को दंड दिया करता था। सेनापती प्रियवत भी राजा का सामना नहीं कर सकते थे क्योंकी राजा के पास सहस्त्र हाथीयों की शक्ती थी। 

यहाँ पर एक हाथी अर्थात 10 छोटे हाथीयों की शक्ती किंतु सेनापती में केवल 10 हाथीयों का बल था। राजा के द्वारा किए जाने वाले अत्याचार के विरुद्ध युद्ध भी छेड नहीं सकता था कारण था राजा के पास मौजुद बाण। एक बाण में 100 शक्तीवाली बाण निकलते हैं जिन्हें सामान्य भाले, तलवार, ढाल से काट पाना कठिन था।

इसी कारण सेनापती हमेशा राजा की बातों को टाल नहीं पाता। राजा को एक शौक था की वह हफ्ते में एक बार शिकार करने जाता मगर कई बार 100 बाण मिलकर भी शिकार को भेद नहीं पाते थे। इन जैसी छोटी बातों को लेकर राजा क्रोध में रहा करता था।

राजा मेघराज जिस राज्य में उसी बगल के राज्य में एक चित्रसेन नाम का चित्रकार अपने गुरू से विद्या प्राप्त करके वास्तविक चित्र बनाता था। कई राजाओं के चित्र केवल वर्णन करने मात्र से बनाए तो राजाओं ने उन्हें कई धन दौलत भी। यह चित्रकार उस धन का एक भाग अपने गुरू के नाम दरिद्र लोगों की सहायता करता था जिस कारण उसके शरीर तेज का भी बढ जाता था।

चित्रसेन यह सब कार्य अपने स्वार्थ के लिए नहीं करता था बल्की गुरू की आज्ञा से करता था। धीरे धीरे चित्रसेन की ख्याती कई अन्य राज्यों में फैल गई और राजा मेघराज ने उसे बुलाया। राजा मेघराज के क्रोध की जानकारी चित्रसेन को थी इसिलिए जाना नहीं चाहता पर भय के चलते जाना पडा।

सेनापती जिस चित्रकार चित्रसेन को बुलाया उसे राजा का चित्र बनाने को कहाँ मगर मन में मृत्यु का भय पनप रहा था। चित्रसेन ने लगने वाला सामान मँगवाया और राजा का चित्र बनाने लगा तो तभी उसे पता चला की राजा एक आँख से अँधा था और चित्र बनाते समय हाँथ काँपने लगे। चित्रसेन ने सोचा अगर वह असली चित्र बनाएगा तो राजा अच्छा नहीं लगेगा और मृत्यु दंड देंगे और अगर दोनों आँख से सहीं चित्र बनाऊ तो गलत चित्र बनने से उसी समय मृत्युदंड देंगे।

राजा का क्रोध, बल ध्यान में आने के बाद दुविधा में पड गया और कुछ सोचने लगा। तब चित्रसेन को गुरू की याद आ गई और बिना चित्र बनाए कोई अच्छा सा कारण बताकर महल से बाहर चला गया। चित्रसेन उसी समय अपने गुरू के पास चला गया और महल में उत्पन्न हुई दुविधा को बताया। गुरू ने सबसे पहले चित्रसेन को शांत किया।

गुरू ने चित्रसेन को बताया की राजा को एक धनुर्धर के रूप में चित्रित करो जिसमें वह घोडे पर सवार होकर तीर से निशाना लगा रहे हैं और उनकी एक आँख बंद दिखाओ जिस्से वह अँधे हैं। गुरू के द्वारा बताए रास्ते से चित्रसेन की समस्या का समाधान हो चुका था अब बिना देरी किए चित्रसेन घोडे पर सवार होकर राजा के महल की ओर चला जाता हैं।

राजा मेघराज को प्रणाम करते हुए चित्रसेन योद्धा रूप वाला वास्तविक चित्र बनाया जिसे देखकर ऐसा लगता था जैसे राजा स्वयं आए हो। राजा अपना योद्धा रूप देखकर प्रसन्न हुआ और इनाम के तौर बहुत सारा धन और खास मोती दिए जिसे पौर्णिमा के समय चंद्र प्रकाश में रखने दिव्य शितल प्रकाश निकलता हैं। राज्य के कई मंत्री दिव्य मोती को देने से क्रोधित हो जाते हैं लेकीन कुछ नहीं कर सकते थे।

तब इनाम और सम्मान पाकर चित्रसेन अपने गुरू की शरण में जा पहूँचा और सारी बातें बताई जिस्से गुरू भी प्रसन्न हुए। चित्रसेन ने वह दिव्य मोती गुरू के चरणों में रखा और ध्यान करने एक पेड के पास चला गया। बाद में गुरू ने उस मोती को तपोबल से उत्पन्न किए चंद्रफुल के पास रखा और स्वयं भी ध्यान में चले गए। चंद्रफुल और मोती के चलते पूरा आश्रम दिव्य प्रकाश से भर गया और शांत वातारण बन गया।

गहरा ज्ञान भाग 1 - चित्रसेन I hindi fiction story by hindistoryloop । Moral of the story 

कहानी से शिक्षा - कोई भी काम करने में जल्द नहीं करनी चाहिए। हमें सबसे पहले उस विषय में गहरा ज्ञान लेना चाहिए। 

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